
सुनो.......
लोग आज भी पूछते हैं हमसफ़र के बारे में!
"आपका नाम ले लूँ!!"
"उड़ गए वो परिंदे ये कहकर...........
बेगानों के शहर में घोंसले नहीं बनाया करते!!
इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए,
तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए,
फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर,
गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए..
"ये तन्हा रात और प्यासी हिचकियाँ,
कुछ तो बयाँ करना चाहती है!!
"दिनभर दर्द छुपाने वालों का सब्र,
आखिर रात को टूट ही जाता है!
जहाँ चुप कराने भी कोई नहीं आता!!
उनकी आँखो से काश कोई इशारा तो होता,
कुछ मेरे जीने का सहारा तो होता,
तोड़ देते हम हर रस्म ज़माने की,
एक बार ही सही उसने पुकारा तो होता