
महफ़िल में आज उनकी हम बदनाम हो गए।
पहले थे बेशकीमती........ अब आम हो गए।
"साहित्य" इंदौर
भले ही कटी है मुफलिसी में ज़िन्दगी मेरी,
मगर देख तेरी महफ़िल को तुझपे तरस आता है।
जब छोड़ा था तूने मुझे गरीब कहकर,
अब देख तेरी हालत को सावन बरस जाता है।।
"साहित्य" इंदौर
raste ki preshni se kv har manna ni chaheye...
kyuki glaub ke paodha me v katte hote....
likin gaulab ki khobsurti bekarar hoti h....
weise hi rasta chahey kitna v muskil kyu na ho us muskil ko pr krne ke liye gaulab ki trh banna jaruri h
वो आये और हमे कहने लगे चलो एक बार,
आज फिर से महफ़िल सजायेंगे तुम्हारे लिए।
"साहित्य" इंदौर
करके याद उसको आज मैं रोना चाहता हूँ।
आजकी महफ़िल से विदा होकर सोना चाहता हूँ।
"साहित्य" इंदौर
हर इंसान दिल का बुरा नहीं होता
Har Koi Insan Bewafa Nahin Hota
बुझ जाता है दीपक अक्सर
तेल की कमी से............
हर बार कसूर