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न वफ़ा हुई हम से, न हुई बेवफ़ाई,
यूँ ही बिछड़ गए हम, कि बस रह गई तन्हाई।
न सलाम आया उनका, न कोई पयाम आया,

पूछा ख़ुदा से — आख़िर क्या क़सूर था मेरा?
क्या मेरा इश्क़ फ़रेब था, या थी कोई रुसवाई?

ख़ुदा ने फ़रमाया — ये क़िस्सा लिखा ही था मैने अधूरा ।
न तेरी ख़ता थी, न उसकी बेवफ़ाई।

न कसूर उनका था, न गलती हमारी थी,
कुछ किस्सों की तकदीर अधूरी ही होती है