ये कैसी बेरुखी सी पैग़ाम है

ये कैसी बेरुखी सी पैग़ाम है...

ये कैसी बेरुखी सी पैग़ाम है,
दर्द है सीने में और मरहूम भी नही,
ऐ नूर पीर पाक मेरे हुजूर ,
हज़रते सुजीत दिदार को तरस रहे है।

More from Sujeet Kumar Ghidoude

यूँ न मुझे उलझाया करो पहेलीयां करके ,
नर्म सुर्ख होंठो को शब्दों का जाम दिया कीजिए !

तेरी खिलखिलाहटों को मैंने अपनी दुनियाँ बना लिया

तेरी खिलखिलाहटों को मैंने अपनी दुनियाँ बना लिया,
तू जो एक बार हँस दे तो मैं अपने सारे ग़म भूल जाऊँ,
सुनो ज़रा ऐ चाहने वालो सुजीत के पागल है वो लोग,
जो बेवजह उन्हें आशिक बेवफ़ा कहते है !

ये कैसी बेरुखी सी पैग़ाम है

ये कैसी बेरुखी सी पैग़ाम है,
दर्द है सीने में और मरहूम भी नही,
ऐ नूर पीर पाक मेरे हुजूर ,
हज़रते सुजीत दिदार को तरस रहे है।

ये कैसी बेरुखी सी पैग़ाम है

ये कैसी बेरुखी सी पैग़ाम है,
दर्द है सीने में और मरहूम भी नही,
ऐ नूर पीर पाक मेरे हुजूर ,
हज़रते सुजीत दिदार को तरस रहे है।